देवगण विवाह उपदेश


 हसीनों की बहस में बूढा हो जाऊँगा,

कब होगी शादी जिसपे प्रेम लुटाऊँगा |

ख़ुदा का प्यारा मैं बन्दा एक गरीब,

बस एक ही दुल्हन अपनाऊँगा ||


जीवन चक्र आगे बढ़ता जाए,

वापस लाने का ना कोई उपाए |

जीवन संगीनी, हृदय अन्गीनी,

कब, कहाँ, क्या पता, रब मिलाए ||


देवगण हैं अब इस इंतज़ार में,

शादी कर प्यारे वेला शुभ धार में |

जीवन का मुख्य अंग होती पत्नी,

संतान बनके प्रकट होंगे संसार में ||


तात् देवत्त्व मैं आभारी, करता हूँ नमन,

रखना सदा दया अपनी, हे ! मेरे भगवन |

पाठ-पूजन, दुनियादारी मुझको ये आते नहीं,

भक्ति रस में झूमूं गाऊं मन में भर वंदन ||


रचनाकार:- वाई. एस. राणा. साहेब 


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