धरा पर सावन, जब-जब झूमे,
बारिश जलधार, गलियन घुमे |
बच्चे मन, नाटि-छोटे, नाव चलावें,
संग सखियन, मृदु गीत गुनगुनावें ||
पपीहा बोले! सुन रे बदरा, ओ बदरा ,
डर लागि हमका, कड़क काहे गरजा |
बदरा कहे! सुन; सुन पपीहा प्यारे,
गर्जन मेरी, संगीत सावन निहारे ||
उ ! कारि कोयलिया कुह-कुह गाती,
धुन सावन में, स्व: सुर रमाती ||
सुन, धुन, जन निराश, खुश हो जाता,
क्षण कुछ ही सही, अंतर्मन खो जाता ||
करत पिकुऊ-पिको-पिकू, मयूरा नाचे,
फैला पंख, निज मयूरी ताके |
देख मोरनी, मयूरा अँखियन कशमक़स,
नृत्य करत डोलत, अपने में लाजे ||
पर्वत, नदियां, वन, जलधि, उपवन,
शील समय सावन, खिले तन-मन |
सद चतुराई प्रकृति, जानि जे जन,
रब खिवैया, राणा नैया, पार विशुद्ध अंतरंग ||
बारिश जलधार, गलियन घुमे |
बच्चे मन, नाटि-छोटे, नाव चलावें,
संग सखियन, मृदु गीत गुनगुनावें ||
पपीहा बोले! सुन रे बदरा, ओ बदरा ,
डर लागि हमका, कड़क काहे गरजा |
बदरा कहे! सुन; सुन पपीहा प्यारे,
गर्जन मेरी, संगीत सावन निहारे ||
उ ! कारि कोयलिया कुह-कुह गाती,
धुन सावन में, स्व: सुर रमाती ||
सुन, धुन, जन निराश, खुश हो जाता,
क्षण कुछ ही सही, अंतर्मन खो जाता ||
करत पिकुऊ-पिको-पिकू, मयूरा नाचे,
फैला पंख, निज मयूरी ताके |
देख मोरनी, मयूरा अँखियन कशमक़स,
नृत्य करत डोलत, अपने में लाजे ||
पर्वत, नदियां, वन, जलधि, उपवन,
शील समय सावन, खिले तन-मन |
सद चतुराई प्रकृति, जानि जे जन,
रब खिवैया, राणा नैया, पार विशुद्ध अंतरंग ||
रचनाकार:- वाई. एस. राणा. साहेब
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