हार निहित जीत
जिंदगी ने हमें यूँ सिखाया ,
के हारने में भी मजा आया ,
जिन्दगी हमें रुलाती गई ,
और हम रोते गए ,
बरसातें हमें बहाकर ले गई ,
और हम निर्जीव से बहते चले गए ,
हमने अपनी मंजिल को ,
कभी नहीं तराशा ,
जिससे मन को न बांध सकी ,
वो डोर, जिसे कहते हैं उमंग व आशा ,
हम अकर्ता रहकर भी ,
अपने आपको कर्ता समझते रहे ,
लेकिन उस कर्ता ने हमें ,
पूर्ण अकर्ता ही बना डाला ,
बस पाषाण और हममें ,
अंतर इतना-सा रहा ,
वह अचल रहा और हम चल रहे ,
लेकिन ये हार हमें सीखाती गई ,
और हम बहुत कुछ सीखते गए ,
हार का अनुभव हमें ,
बहुत कुछ सीखा सकता है ,
एक रुके हुए को भी ,
आगे बढ़ा सकता है ,
वेद शास्त्रों का अध्ययन भी ,
जो हमें सीखा नहीं पाता है ,
अनुभव हमें, वो गुप्त रहस्य ,
प्रत्यक्ष कर दिखा जाता है ,
हार को, हार में तबदीलकर ,
बना लो दामन की प्रीत ,
हार की, हार से कड़ी मिलकर ,
बन जाएगी वो, एक दिन जीत ||
रचनाकार:
वाई. एस. राणा साहेब
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