आत्मरस गगरी / Ras Gagari


|३| जानी न अभी मानव देह, चल पड़े देव ललकारने |
देव तो क्या! राह में क्षीण, हथ जोड़े पैर पसारने |३|

|४| अभी जाना ना, मानव जीवांश, पीछे पड़ गई दुषैया |
जरुरी भी तो, ना मिला, अटकी रह गई नैया |४|

|५| है जरूरी, उ चाहिए, देना पड़त है यारे |
मन खिच-खिच, आ घिरे, बांध न टूटे, मारे |५|

|६| जिसने है भेजा तुझे,उसी को गया तू भूल |
प्रकृति अनुकूल बन,पा आत्म निज मूल |६|

|७| जीवन है सत्य की राह, मत उल्ट चल प्यारे |
असत पथ पर गिरे, गिरे, सद पथ चित्त सँवारे |७|

|८| सन्तन सबे मूल एक भिन्न भिन्न होत कथन |
ख़ुद में ख़ुद के जानि नित करिं मंथन |८|

नोट:- उपरोक्त तथ्य मेरे अपने, अपने लिए प्रेरणा विचार हैं अन्य व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है, कोई भी व्यक्ति इन्हें भजन के रूप में नि:शुल्क इस्तेमाल कर सकता है |
रचनाकार:- वाई. एस. राणा. साहेब 


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